“कानून के हाथ यहां छोटे पड़ रहे हैं। मुझे चेक नहीं, इंसाफ चाहिए।”

 

कुकर्म करतें हैं पहले, फिर छिपते फिरते हैं

दरिन्दगी करतें हैं जब, तब क्यूँ नहीं डरते हैं

आज नहीं पकड़े गए मगर कल हाथ आ जाएँगे

कानून के हाथ आज छोटे पड़ गए लेकिन कल लंबे हो जाएँगे

∼ लक्ष्मी मित्तल 

 

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