देख चोखट पे महाराज को
दर्शन को ललाईत हुआ बालक
पैर छुए , सिर झुकाया उनको
खूब आर्शीवाद पाए बालक
बालक को अपना हमजोली जान
महाराज ने छाती से लगा लिया
शायद ढूँढ रहा कोई साथी
तभी तो बालक को अपना बना लिया
आई जब बालक की मैया
बापिस बालक ले जाने को
कैसे भी न माने महाराज
कहे माँ को खाली लोट जाने को
यूँ ही कई देर तक महाराज
करता रहा इनकार
गले में बाहें डाल बालक के
यूँ जताए रहने दो मेरे पास
यहाँ कदम कदम पे मिलता धोखा है
वहीं इस बेजुबान का प्यार देखो कितना अनोखा है
निस्वार्थ प्रेम की ये होते मिसाल हैं
जबकि इंसानों के प्रेम पे तो उठते रहते सवाल हैं
फिर भी मैं यही कहूँगी कि……..
बेजुबानों में भी भावनाएँ पूरी होती हैं
मगर बच्चे की सुरक्षा भी जरूरी होती है
∼ लक्ष्मी मित्तल