बेजुबान का प्यार

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देख चोखट पे महाराज को

दर्शन को ललाईत हुआ बालक

पैर छुए , सिर झुकाया उनको

खूब आर्शीवाद पाए बालक

बालक को अपना हमजोली जान

महाराज ने छाती से लगा लिया

शायद ढूँढ रहा कोई साथी

तभी तो बालक को अपना बना लिया

आई जब बालक की मैया

बापिस बालक ले जाने को

कैसे भी न माने महाराज

कहे माँ को खाली लोट जाने को

यूँ ही कई देर तक महाराज

करता रहा इनकार

गले में बाहें डाल बालक के

यूँ जताए रहने दो मेरे पास

यहाँ कदम कदम पे मिलता धोखा है

वहीं इस बेजुबान का प्यार देखो कितना अनोखा है

निस्वार्थ प्रेम की ये होते मिसाल हैं

जबकि इंसानों के प्रेम पे तो उठते रहते सवाल हैं

फिर भी मैं यही कहूँगी कि……..

बेजुबानों में भी भावनाएँ पूरी होती हैं

मगर बच्चे की सुरक्षा भी जरूरी होती है

∼ लक्ष्मी मित्तल 

 

 

 

 

अमृतसर ट्रेन हादसा

दीपावली अभी आई ही नहीं, दीपक अभी जले ही थे कहाँ ;

मगर घरों के दीपक बुझ गए, ऐसा हुआ अमृतसर ट्रेन हादसा |

गए थे रावण दहन देखने, पुतला पूरा जला ही था कहाँ  ;

मगर घरों के दीपक जल गए, ऐसा हुआ अमृतसर ट्रेन हादसा |

तूफ़ान बनके गुजरी, मानो साप बनके है डसा ;

खौफनाक मंजर बन गया, ऐसा हुआ अमृतसर ट्रेन हादसा |

शोर वो जलते पटाखों का है या, गूँज वो सीटी की है क्या ;

जब तक समझ में आती, ट्रेन बन गई जानलेवा बादशाह |

कोई था बेटा… कोई था भाई, कहीं बालक कंधे पर चढ़ा ;

कोई  थी पत्नी या कोई बहन, सबके लिए हादसा बना कालदशा |

कौन बचता … किसको बचाता, चारों ओर चीत्कार गूँज उठा ;

पलक झपकते ही खत्म था सब, मौत बनकर आया हादसा |

इक ओर रावण जल रहा था, दूजी ओर दर्शकों की दुर्दशा ;

अपनों का अपनों को पहचानना मुश्किल,  भयानक यह हादसा |

किसको दोषी ठहराएँ… किसकी लापरवाही बताएँ, दिल जल रहा भारत का ;

सीखना होगा सबक सभी को, ताकि फिर कभी भी न दोहराया जाए यह हादसा |

∼ लक्ष्मी मित्तल 

 

 

क्या मैं वाकई… तेरा रूप हूँ ?

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माँ , तेरे नवरात्रे आ गए हैं | वे भी पूजेंगें मुझे, जिनको अपने घर में बेटी नहीं चाहिए |

हाँ , कंजक चाहिए बस आज के लिए, ढूँढ-ढूँढ कर लायेंगें मुझे पर बेटी  नहीं चाहिए |

क्यूंकि मैं तेरा रूप कही जाती हूँ न इसलिए मेरे पैर पखारे जायेंगें ,मेरे सामने पकवान

परोसे जाएँगें और जाते हुए मेरे से आर्शीवाद भी लिया जाएगा |

माँ, क्या वाकई मैं……….तेरा…….. रूप हूँ ?

गर हूँ तो फिर……

क्यूँ मैं दुर्गा बन नहीं पाती जब मैं जीना चाहती हूँ पर

मुझे कोख में ही मार दिया जाता है

क्यूँ मैं चंडी बन नहीं पाती जब कोई दरिंदा मुझ दुधमुही को

फूल समझकर उठा ले जाता है

क्यूँ मैं ज्वाला बन नहीं पाती जब मुझे नोच-नोचकर

पैरों तले कुचल दिया जाता है

क्यूँ मैं कालिका  बन नहीं पाती जब मेरी देह के साथ आत्मा को भी

लहुलुहान कर दिया जाता है

क्यूँ मैं चामुण्डा बन नहीं पाती जब मुझ मासूम को गुड़िया समझ

तार-तार कर दिया जाता है

माँ, क्या वाकई मैं……….तेरा…….. रूप हूँ ? शायद हूँ |

हूँ मैं तेरा रूप लेकिन सिर्फ आज |

आज तो तेरा भक्त मुझे पूजेगा और

कल न जाने कौन दरिंदा…………..

∼ लक्ष्मी मित्तल 

 

 

 

 

 

 

नवरात्रों की शुभकामनाएँ

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न जाने क्या कशिश है माँ के प्यार में

लम्बी दूरियां……. छोटी बन जाती हैं

देने पे आती………… जब मैया रानी

झोलियाँ भी….. छोटी…. पड़ जाती हैं

∼ लक्ष्मी मित्तल 

 

आधा-अधुरा आईना

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इक दिन आईने ने मुझसे पूछा :

क्यूँ बार-बार मेरे सामने आ रही हो ?

हैरान होकर , क्यूँ इतना मुझे निहार रही हो ?

बताया न  तुम्हें कि तुम……….. खूबसूरत हो

सुन्दरता की……. प्यारी सी……… मूरत हो

मैंने बोला :

क्या लगा तुम्हें……  मैं अपनी खूबसूरती जानने आई हूँ

सामने आ तुम्हारे मैं तो………. तुम्हें पहचानने आई हूँ

आईना गर्व से बोला :

बेमतलब मेरे सामने कोई आता नहीं

बिना मुझसे मिले, बाहर कोई जाता नहीं

आ सामने मेरे, इतना सब इतरातें हैं

देख खुद को मुझमें, इतना वो इठ्लातें हैं

मैंने बोला :

जितने भी आईनों से पूछा, सब यही बोलते हैं

सब अपने में एक जैसी ही खूबसूरती को तोलते हैं

तुम भी उन्हीं में से हो….. जो बाहरी खूबसूरती को तोलते हैं

आधे-अधूरे हैं सब…….जो भीतरी खूबसूरती के लिए कुछ नहीं बोलते हैं

तुम मेरे काम के नहीं…. क्यूंकि बाहरी खूबसूरती तो कोई भी बता दे

चाहती हूँ वो आईना …….जो मेरे अन्दर की खूबसूरती मुझे दिखा दे |

∼ लक्ष्मी मित्तल

 

 

WhatsApp Image 2018-10-02 at 1.04.38 PMगर विद्या का मंदिर… अपना   फ़र्ज़…

ईमानदारी…… से….. निभाए

बापू की बन्दूक….. बालक को ….

यूँ……. आँख…… न….. दिखाए

∼ लक्ष्मी मित्तल 

मेरा कोहिनूर

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तू मेरा  अभिमान  है, रब का दिया अनमोल वरदान है;

हरपल  मेरे  संग  रहना , तू मेरा अरमान  है |

तू मेरा नूर  है, तू मेरा सुकून है ;

पराई होकर भी पराया न होना, तो मेरा खून है |

तू  मेरी  हूर है तो , तू ही मेरा गुरुर है ;

हर बेटी, हर माँ , का हीरा, पर तू मेरा कोहिनूर है ..

तू मेरा कोहिनूर है |

∼ लक्ष्मी मित्तल 

“कानून के हाथ यहां छोटे पड़ रहे हैं। मुझे चेक नहीं, इंसाफ चाहिए।”

 

कुकर्म करतें हैं पहले, फिर छिपते फिरते हैं

दरिन्दगी करतें हैं जब, तब क्यूँ नहीं डरते हैं

आज नहीं पकड़े गए मगर कल हाथ आ जाएँगे

कानून के हाथ आज छोटे पड़ गए लेकिन कल लंबे हो जाएँगे

∼ लक्ष्मी मित्तल 

 

आज इक फोटो करवा लें

fe4cf81a-8557-40ec-a242-071ea2ac9955कभी तूने हमको बनाया, आज हमने तुझे बनाया है

हम खुश हैं ………. तू अपने संग खुशियाँ लाया है |

सोच- समझ कर गढ़ता हमको, हमने भी मेहनत से गढ़ा है

जिस मिट्टी से हम बने, उसी  मिट्टी से तू बना है |

अब तो कुछ दिन, पलपल तुझे पूजा जाएगा

पकवान बनेगें तेरे लिए, शायद हमको भी कुछ मिल जाएगा |

हम खुश हैं ………

चलो हम आज कुछ खेलें , कुछ तेरे संग बतिया लें

कल न जानें कौन ले जाए तुम्हें, आज ही इक फोटो करवा लें |

SMILE GANESHA

∼ लक्ष्मी मित्तल 

आग से न खेलना (INFORMATIIVE FOR CHILDREN ALSO)

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“आग से न खेलना, चोट लग जाती है ”  बचपन में  बार-बार यही बताया जाता है |लेकिन मुंबई के क्रिस्टल टावर की विल्डिंग में लगी भयानक आग में, कैसे १० वर्ष की जेन सदावर्ते  ने अपनी सूझ वूझ और fire fighting  and disaster– management की सीख को mind में रखते हुए कई जानों को बचाया |यह एक वहुत  informative and inspiring कहानी है जिसे मैंने इस short kavita के जरिए बताना चाहा है |

छोटी – सी जेन सदावर्ते, मिसाल बन जाती है ;

आग से न खेलना, चोट लग जाती है |

वो नन्ही सी परी,  भयानक आग से गिरी ;

इक पल के लिए, सुन्न हो जाती है |

आग से न खेलना, चोट लग जाती है ||

काले धुएं का भवंडर , अफरा-तफरी सबके अन्दर;

नन्ही परी अपनी मासूमियत भूल जाती है |

आग से न खेलना, चोट लग जाती है ||

वो घुटन भरा माहोल, प्राणों को बचाने की होड़ ;

नन्ही परी, खुद खतरों के खिलाड़ी बन जाती है |

आग से न खेलना, चोट लग जाती है ||

cotton के गीले कपड़े,  air purifier बने टुकड़े ;

मुंह पर रखने की, सलाह देती जाती है |

सांस लेने में दिक्कत, कम हो जाती है ||

आग से न खेलना, चोट लग जाती है ||

fire fighting की सीख, बनी आज उसकी जीत ;

अपनी सूझ-वूझ से, आग से भी लड़ जाती है |

आग से न खेलना, चोट लग जाती है ||

आग से न खेलना, चोट लग जाती है ||

∼ लक्ष्मी मित्तल 

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